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श्रीलाल शुक्ल ने एक अंजान लेखक के लिए ‘कथाक्रम सम्मान’ की सिफारिश की

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‘आनन्द सागर स्मृति कथाक्रम सम्मान’ के इस 14वें सम्मान समारोह में देशभर से हिंदी के लेखक और साहित्य प्रेमी एकत्रित हुए थे. वरिष्ठ आलोचक परमानन्द श्रीवास्तव, शिव कुमार मिश्र, गिरिराज किशोर, विजय मोहन सिंह, मैत्रेयी पुष्पा, रवीन्द्र वर्मा, चन्द्रकान्ता, चन्द्रकला त्रिपाठी, महुआ माझी, मदन मोहन, शकील सिद्दकी, मूलचन्द गौतम, जितेन ठाकुर, सुषमा मुनीन्द्र, देवेन्द्र, अखिलेश, वीरेन्द्र यादव, हरिचरण प्रकाश, शिवमूर्ति, गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव, नमिता सिंह, अरविन्द त्रिपाठी, वंदना राग, सुशील सिद्धार्थ, रजनी गुप्त, चन्दन पांडे मौजूद थे. लेकिन डॉ. नामवर सिंह, मैंनेजर पांडेय, काशीनाथ सिंह, राजी सेठ, रामधारी सिंह दिवाकर, विष्णु नागर, रवीन्द्र कालिया इस समारोह में पहुंच नहीं पाए .

इस पूरे आयोजन में मैंने एक बात देखी और महसूस की कि जिस तरह की आत्मीयता और मैत्री-भाव सम्मानित लेखक के प्रति नजर आना चाहिए वह इसमें पूरी तरह नदारद था. बल्कि अपने प्रति मैंने बहुत से वरिष्ठ और कनिष्ठों में एक अजीब-सा कुंठा और उपेक्षा का भाव देखा. इसका मुझे एक कारण यह नजर आया कि उस बार का यह सम्मान एकदम चौंकाने वाला था. क्योंकि यह सम्मान जहां दूधनाथ सिंह, असग़र वजाहत, मैत्रेयी पुष्पा, ओमप्रकाश वाल्मीकि, संजीव, चन्द्रकिशोर जायसवाल, शिवमूर्ति जैसे दिग्गजों को दिया जा चुका हो, उनके बरक्स मुझे कैसे सम्मान मिल गया? उस लेखक को जिसका वास्ता न कभी राजेन्द्र यादव स्कूल से रहा, न नामवर सिंह स्कूल से. उन दिनों हिंदी साहित्य में इन्हीं दो स्कूलों का बोलबाला था. ईमानदारी से कहूं इसमें दोष वहां इकट्ठा हुए लेखकों का भी नहीं था. सच्चाई यह है कि जैसे मैं बहुत से लेखकों को नहीं जानता था, वैसे ही वे भी मुझे जानते होंगे, इसकी क्या गारंटी है? उन दिनों हिंदी साहित्य में तरह-तरह के अनुमानों का बाजार गर्म था कि इस आदमी को यह सम्मान मिला तो मिला कैसे? कहां से इसने जुगाड़ लगाया होगा?

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