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‘जो भी आतंकवादी मारा जाएगा, उसी जगह पर दफना दिया जाएगा’, अमित शाह ने बताया ये फैसला क्यों लिया

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जम्मू-कश्मीर के लिए दूसरी सबसे अहम तारीख है. इससे पहले साल 2019 में 5 अगस्त को  अनुच्छेद 370 को रद्द करने का ऐतिहासिक फैसला लिया गया था. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर मुहर लगा दी है.

इसके साथ ही राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक-2023 और जम्मू कश्मीर आरक्षण (संशोधन) भी पास हो गया है. लोकसभा में इन दोनों बिलों को पहले ही पारित किया जा चुका है. संसद में बहस के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने जोर देकर कहा कि आतंकवाद मुक्त एक नए कश्मीर की शुरुआत हो चुकी है.

इन दोनों विधेयकों को पेश करने के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने जो बातें सदन में कही हैं उनके कई वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हैं. इसमें पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जम्मू-कश्मीर पर लिए गए फैसलों से जुड़े हैं. अमित शाह ने पंडित नेहरू के फैसलों को ‘बड़ी भूल’ बताया है.

राज्यसभा में चर्चा के दौरान अमित शाह ने भाषण की शुरुआत करते हुए कहा कि आज का दिन जम्मू और कश्मीर और भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से अंकित होगा जब सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को समाप्त करने और जम्मू और कश्मीर के पुनर्गठन की मंशा और प्रक्रिया को संवैधानिक घोषित किया है.

अमित शाह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जम्मू और कश्मीर के पास कभी आंतरिक संप्रभुता नहीं थी और अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था. किसी को यह अधिकार नहीं कि अपना बड़ा हृदय दिखाने के लिए देश के एक हिस्से को जाने दे। हम तो एक-एक इंच जमीन के लिए लड़ेंगे.  धारा 370 को परमानेंट कहने वाले लोग देश के संविधान और संविधान सभा का अपमान कर रहे हैं.  अब कश्मीर से विस्थापित हुए लोग कश्मीर में चुनाव भी लड़ सकते हैं और मंत्री भी बन सकते हैं.

अमित शाह ने बताया ‘नेहरू की भूल’

अमित शाह ने कहा, ‘हमारी सेना जीत रही थी और दुश्मन सेना पीछे हट रही थी उस वक्त अगर नेहरु जी दो दिन और रुक जाते और सीजफायर नहीं करते तो आज पूरा कश्मीर हमारा होता. 550 से ज्यादा रियासतों का भारत में विलय हुआ, कहीं भी धारा 370 नहीं लगी, सिर्फ जम्मू-कश्मीर नेहरू जी देख रहे थे, तो वहीं क्यों लगी?’

अमित शाह ने कहा कि तीन परिवारों ने अपने फायदे के कारण जम्मू-कश्मीर के ST समुदाय को उनके अधिकारों से वंचित रखा. जम्मू और कश्मीर में 42 हज़ार लोग मारे गए हैं क्योंकि धारा 370 अलगाववाद को बल देती थी और इसके कारण वहां आतंकवाद खड़ा होता था.

जम्मू-कश्मीर में डिलिमेटशन से कहां कितनी सीटें बढ़ीं
अमित शाह ने बताया कि पहले जम्मू में 37 सीटें थीं जो अब 43 हो गई हैं, कश्मीर में पहले 46 सीटें थीं वो अब 47 हो गई हैं और पाक-अधिकृत कश्मीर की 24 सीटें रिज़र्व रखी गई हैं,क्योंकि पाक अधिकृत कश्मीर भारत का है और इसे हमसे कोई नहीं छीन सकता. जम्मू और कश्मीर के इतिहास में पहली बार 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित की गई हैं और अनुसूचित जाति के लिए भी सीटों का आरक्षण किया गया है

गुर्जरों की सीटें कम किए बिना मिलेगा बकरवाल आरक्षण
गृहमंत्री शाह ने बताया कि गुर्जर भाइयों की सीट कम किये बिना भी बकरवाल भाइयों को आरक्षण का लाभ मिलेगा. अमित शाह ने कहा, ‘जहां तक देश की एक भी इंच ज़मीन का सवाल है,मोदी सरकार का नज़रिया तंग है और रहेगा, हम दिल बड़ा नहीं कर सकते. अगर धारा 370 इतनी ही उपयोगी थी, तो नेहरु जी ने उसके साथ ‘टेम्पररी’ शब्द का उपयोग क्यों किया? अब जम्मू-कश्मीर के युवाओं के हाथों में बन्दूक नहीं लैपटॉप होंगे, मोदी जी के नेतृत्व में नए कश्मीर बनने की शुरुआत हो गयी है’.

‘जम्मू-कश्मीर के विलय में देरी क्यों हुई’
अमित शाह ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर निशाना साधते हुए कहा कि सभी जानते हैं कि कश्मीर के विलय में इसलिए देरी हुई थी, क्योंकि शेख अब्दुल्ला को विशेष स्थान देने का आग्रह था और इस कारण विलय में देरी हुई और पाकिस्तान को आक्रमण करने का मौका मिला.

‘जम्मू-कश्मीर के संविधान का कोई महत्व नहीं’
अमित शाह ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने ये भी माना कि राज्यपाल शासन और राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा को चुनौती देना ठीक नहीं है और ये पूर्ण रूप से संवैधानिक प्रक्रिया के मुताबिक है.शाह ने कहा कि अनुच्छेद 370 (3) के प्रावधान को संविधान सभा ने ही तय किया और ये कहा गया कि भारत के माननीय राष्ट्रपति धारा 370 में सुधार कर सकते हैं, इस पर रोक लगा सकते हैं और इसे संविधान से बाहर भी कर सकते हैं.

शाह ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि 5 अगस्त, 2019 को तत्कालीन राष्ट्रपति जी को अनुच्छेद 370 का संचालन बंद करने का पूर्ण अधिकार है.शाह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ये भी माना कि धारा 370 के तहत मिली हुई शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति महोदय एकतरफा सूचना जारी कर सकते हैं जिसे संसद के दोनों सदनों का साधारण बहुमत से अनुमोदन चाहिए.  सुप्रीम कोर्ट ने ये भी माना कि जब धारा 370 समाप्त हो चुकी है, तो ऐसे में जम्मू और कश्मीर के संविधान का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता है.

जम्मू-कश्मीर में मारे जा चुके हैं 42 हज़ार लोग
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जम्मू और कश्मीर में 42 हज़ार लोग मारे गए हैं क्योंकि धारा 370 अलगाववाद को बल देती थी और इसके कारण वहां आतंकवाद खड़ा होता था. उन्होंने कहा कि जब समय ये सिद्ध कर दे कि किसी से कोई गलत फैसला हुआ है, तो देशहित में उसे वापस आना चाहिए और इसके लिए अभी भी समय है.

जम्मू-कश्मीर में साल 1989 से शुरू हुआ आतंकवाद का जिक्र करते हुए अमित शाह ने कहा कि हज़ारों विस्थापित हुए लोग, विशेषकर कश्मीरी पंडित और सिख, देशभर में बिखर गए और अपने ही देश में निराश्रय हो गए. 46,631 परिवार कश्मीर से विस्थापित हुए और मोदी सरकार के कई प्रयासों से अब तक 1 लाख 57 हज़ार 967 लोग रजिस्टर्ड हुए हैं. उन्होने कहा कि नरेन्द्र मोदी सरकार विस्थापितों को न्याय देने के प्रति कटिबद्ध है, ऐसे लोग मतदान भी कर सकेंगे, चुनाव भी लड़ सकेंगे और जम्मू और कश्मीर में मंत्री भी बन सकेंगे.

‘सेना भेजने में देरी किसने की थी’
आजादी के बाद रियासतों के विलय का मुद्दा उठाते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि आजादी के बाद के भारत की रचना को जानते हैं, उन्हें मालूम होगा कि हैदराबाद में कश्मीर से भी बड़ी समस्या हुई थी, लेकिन क्या जवाहरलाल नेहरू गए वहाँ थे या फिर जूनागढ़, लक्षद्वीप या जोधपुर में गए थे.जवाहरलाल नेहरू ने सिर्फ एक ही जगह जम्मू-कश्मीर का  काम देखा था और उसे भी वे आधा छोड़कर आ गए.

अमित शाह ने  कहा कि 550 से ज्यादा रियासतों का भारत में विलय हुआ,कहीं भी धारा 370 नहीं लगी,सिर्फ जम्मू-कश्मीर नेहरू जी देख रहे थे, तो वहीं क्यों लगी? कश्मीर में विलय में हुई देरी के बारे में  शाह ने पूर्व पीएम नेहरू पर निशाना साधते हुए कहा कि महाराजा पर शेख अब्दुल्ला को विशेष स्थान देने का आग्रह था और इसी कारण विलय में देर हुई और पाकिस्तान को आक्रमण करने का मौका मिला.

गृह मंत्री ने विपक्ष से सवाल किया कि इतने सारे कठिन राज्यों का विलय हुआ, लेकिन कहीं पर भी धारा 370 क्यों नहीं है. शाह ने कहा कि न तो जूनागढ़, जोधपुर, हैदराबाद और न ही लक्षद्वीप में धारा 370 है. उन्होंने कहा कि धारा 370 की शर्त किसने रखी और सेना भेजने में देरी क्यों हुई, विपक्ष को इसका जवाब जनता को देना होगा.

सीज फायर नहीं होता तो पूरा कश्मीर तिरंगे के नीचे होता
गृह मंत्री ने कहा कि यह सर्वविदित है कि अगर असमय सीजफायर नहीं होता तो पाक अधिकृत कश्मीर नहीं होता. उन्होंने कहा कि अगर उस समय दो दिन और रुक गये होते तो पूरा पाक अधिकृत कश्मीर तिरंगे के तले आ जाता.

शाह ने कहा कि एक तो कश्मीर का मामला यूएन में ले ही नहीं जाना चाहिए था और अगर ले भी जाया गया तो इस मामले को अनुच्छेद 51 में क्यों ले गए. उन्होने कहा कि अगर इस मसले को अनुच्छेद 35 में ले गए होते तो हमें कोई दिक्कत नहीं होती.

गृह मंत्री ने कहा, ‘अगर दो दशक बाद भी ऐसा लगेगा कि धारा 370 को हटाने का फैसला गलत है तो हम स्वीकार करेंगे कि यह हमारा और हमारी सरकार का फैसला है’. शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने यह फैसला लिया है और न ही मोदी जी इस फैसले से पीछे हट सकते हैं, न ही कैबिनेट और पार्टी इससे पीछे हट सकती है. उन्होंने कहा कि अहम फैसलों की जिम्मेदारी स्वीकार करनी पड़ती है. देश की जनता अब समझ गई है कि कश्मीर के सवाल के मूल में जवाहरलाल नेहरू जी की गलतियां थीं.

आतंकवादी घटनाओं का आंकड़ा
कांग्रेस की सरकारों को घेरते हुए अमित शाह ने बताया कि यूपीए सरकार के 10 सालों के कार्यकाल 2004 से 2014 के बीच कश्मीर में 7,217 आतंकवादी घटनाएं हुई थीं. वहीं मोदी सरकार के कार्यकाल में साल 2014 से 2023 के बीच 2,197 आतंकवादी घटनाएं हुई हैं यानी 70 फीसदी की कमी आई है. आतंकी घटनाओं का आंकड़ा बताते हुए अमित शाह ने सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट ऑपरेशन का भी जिक्र किया.

गृहमंत्री ने अमित शाह ने कहा कि यूपीए के साल 2004 से 2014 के कार्यकाल के दौरान कश्मीर में  2,900 सुरक्षा बल और आम आदमियों की मौत आतंकवाद की वजह से हुई है. वहीं मोदी सरकार के कार्यकाल में अब  981  सुरक्षाबलों और आम आदमियों ने जान गंवाई है.

पत्थरबाजी में कमी आई 
साल 2010 में पत्थर फेंकने की  संगठित वारदातें 2,656 हुईं जिनकी वजह से 112 की मौत और 6,235 लोग जख्मी हुए थे. वहीं अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद से बीते चार साल में पत्थर फेंकने की एक भी घटना नहीं हुई. अमित शाह ने कहा कि जब पत्थर फेंकने की घटना नहीं हुई तो इससे किसी की भी मौत नहीं हुई.

पाकिस्तान की ओर से सीजफायर में कितनी कमी आई
अमित शाह ने आंकड़ा बताते हुए कहा कि साल 2010 में पाकिस्तान की ओर से सीज फायर की 70 घटनाएं हुईं. वहीं साल 2023 आते-आते ऐसी घटनाएं मात्र 6 हुई हैं. पहले घुसपैठ की 489 घटनाएं हुईं, अब ये घटकर 48 तक रह गईं. साल 2010 में 18 आतंकवादी घाटी छोड़कर भागे थे, अभी मिले आंकड़ों की मुताबिक 281 आतंकवादी घाटी छोड़ चुके हैं.

आतंक को फंडिंग करने वालों पर ऐक्शन
गृह मंत्री ने कहा कि आतंकवाद ही नहीं बल्कि आतंकवाद को पैसा देने वाले नेटवर्क पर भी प्रहार किया गया है. राष्ट्रीय जाँच एजेंसी एनआईए ने आतंकवाद को फाइनेंस करने वालों पर 32 केस और स्टेट इन्वेस्टिगेशन एजेंसी ने 51 केस दर्ज किए हैं. इन मामलों में 229 लोगों की गिरफ्तारी और 150 करोड़ की संपत्ति जब्त   और 134 बैंक अकाउंट में 100 करोड़ रुपए से अधिक सीज किए गए हैं.

इसके बाद अमित शाह ने जो बात बताई वो अपने आप में हैरान कर देने वाली थी. गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर पहले पत्थरबाजी की घटनाओं के लिए कुख्यात था. लेकिन इधर बीते कई सालों से ऐसी कोई भी घटना सामने नहीं आई है. सरकार का दावा है कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने से अलगाववाद की वजह से जो आतंकी घटनाएं होती थीं, उन पर लगाम लगाया जा चुका है.

‘जो आतंकी जहां मारा जाएगा, वहीं दफनाया जाएगा’
इसके साथ ही अमित शाह ने बताया कि पहले एन्काउंटर में मारे गए आतंकवादियों के जनाजे में 25-25 हजार लोगों की भीड़ आती थी. अनुच्छेद 370 हटने के बाद ऐसा कोई नजारा अब सामने नहीं आता है. इसकी वजह है कि सरकार ने फैसला किया है कि जो भी आतंकवादी मारा जाएगा उसी जगह पर धार्मिक सम्मान और रीति-रिवाज के मुताबिक दफना भी दिया जाएगा.

तो नहीं मिलेगी जम्मू-कश्मीर में नौकरी
इसके साथ ही सरकार ने फैसला किया है कि अगर पत्थर फेंकने का कोई मामला दर्ज है तो उस व्यक्ति के परिवार में किसी को भी नौकरी नहीं मिलेगी. इसके अलावा जिसके परिवार के सदस्य पाकिस्तान में बैठकर आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं उसके परिवार में भी किसी को नौकरी नहीं मिलेगी. वहीं टेलीफोन रिकॉर्ड के आधार पर यह पाया जाता है कि किसी परिवार का व्यक्ति आतंकवाद को बढ़ावा देने में शामिल है तो ऐसे व्यक्ति के परिवार का सदस्य पहले से नौकरी मैं है तो उसे भी बर्खास्त करने का नियम बनाया गया है.

दिग्विजय सिंह ने सरकार को घेरा
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सोमवार को कहा कि सरकार ने जम्मू-कश्मीर के ‘संवेदनशील’ मामले को ‘बहुत असंवेदनशील’ तरीके से संभाला है. उन्होंने कि स्थानीय लोगों को पिछले चार वर्षों से प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है.

उन्होंने राज्यसभा में कश्मीर से संबंधित दो विधेयकों पर चर्चा के दौरान कहा कि स्थानीय लोगों की इच्छा की अनदेखी की जा रही है और सरकार राज्य के बाहर से लाए गए अधिकारियों के माध्यम से ‘निरंकुश तरीके’ से काम कर रही है.

कांग्रेस नेता ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा अचानक छीन लिया गया और अब सरकार इसे बहाल करने का प्रस्ताव कर रही है. सिंह ने आगे कहा कि जम्मू-कश्मीर का मामला संवेदनशील है और ‘हमें वहां की स्थिति को समझने की जरूरत है’. सिंह ने कहा, ‘अगर जम्मू कश्मीर और कश्मीर घाटी भारत के साथ है तो इसका श्रेय पंडित जवाहरलाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला को जाता है.’

उन्होंने कहा, ‘अमित शाह जी, जवाहरलाल नेहरू के बारे में कितना भी बोलें लेकिन तथ्य यह है कि कश्मीर घाटी नेहरू की वजह से भारत के साथ है, जिन्हें शेख अब्दुल्ला पर भरोसा था’.साल 2019 में सरकार के अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के कदम पर सिंह ने कहा कि इसके 90 प्रतिशत प्रावधान पहले से ही धीरे-धीरे भारतीय संविधान में आत्मसात हो गए थे और जब इसे निरस्त किया गया था तो शायद ही कुछ बचा था. उन्होंने कहा कि घाटी में रोजाना आतंकवाद की घटनाएं होती हैं.

जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023 पर सिंह ने कहा कि वह विस्थापित लोगों के लिए आरक्षण के पक्ष में हैं. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि वहां के स्थानीय लोगों के लिए वर्तमान आरक्षण को कम करने के बाद कहीं यह आरक्षण तो प्रदान किया जाएगा. सिंह ने आगे आरोप लगाया कि जम्मू-कश्मीर में स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर नहीं मिल रहे हैं. दिग्विजय सिंह ने कहा,’ठेकेदार बाहर से आ रहे हैं. स्थानीय लोगों के पास कोई अधिकार नहीं है.’

सिंह ने कहा,’वहां निरंकुश शासन है. स्थानीय लोगों से सलाह नहीं ली जाती है. अन्य राज्य कैडर के अधिकारियों को वहां लाया जाता है. पिछले चार साल से वहां कोई विधानसभा नहीं है. आप एक संवेदनशील राज्य के लिए असंवेदनशील तरीके से कानून लाए हैं और प्रशासन राज्य के बाहर से लाए गए लोगों के माध्यम से चलाया जाता है. स्थानीय लोगों की वहां कोई भागीदारी नहीं है.’

हालांकि, उन्होंने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने वहां बहुत कठिन स्थिति में काम किया है.उन्होंने यह भी कहा कि परिसीमन आयोग ने राज्य में एकतरफा तरीके से काम किया है. सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को नजरबंद किए जाने का कारण भी जानना चाहा जैसा कि उन्होंने दिन में दावा किया था.  इस पर तुरंत जवाब देते हुए शाह ने कहा कि वहां कोई भी नजरबंद नहीं है.

वहीं बहस में भाग लेते हुए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के जॉन ब्रिटास ने व्यंग्यात्मक लहजे में जवाहरलाल नेहरू के लिए एक मंत्रालय बनाने का सुझाव दिया.इस पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि यह अद्भुत विडंबना है कि 1959 में ईएमएस नंबूदरीपाद के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट सरकार को नेहरू ने गिरा दिया था लेकिन आज उन्हें इससे कोई गुरेज नहीं है।

इसका जवाब देते हुए ब्रिटास ने कहा, ‘इसलिए उन्हें (कांग्रेस को) सजा दी गई है और वे यहां बैठे हैं. अगर एसआर बोम्बाई मामले में कोई फैसला नहीं आया होता, तो वे ज्यादातर सरकारों को बर्खास्त कर देते.’

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