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अनुच्छेद 370 बना इतिहास… जम्मू-कश्मीर को कोई विशेष दर्जा नहीं, 10 प्वाइंट में समझिये सुप्रीम कोर्ट का पूरा फैसला

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सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 (Article 370) को रद्द किए जाने को सही ठहराया है. प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था और राष्ट्रपति के पास इसे हटाने का पूरा अधिकार है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने इसके साथ ही कहा कि भारत में विलय के समय जम्मू-कश्मीर ने अपनी संप्रभुता खो दी थी और अब वह भारत का अभिन्न अंग है.

चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने तीन अलग-अलग फैसले दिए, लेकिन इस मामले में सभी जज एक निष्कर्ष पर सहमत थे.

आइए समझते हैं अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की खास बातें…

जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के फैसले को याचिकाकर्ताओं ने कोई चुनौती नहीं दी, इसलिए अदालत को इस पर फैसला देने की जरूरत नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद इस्तेमाल की जाने वाली शक्तियों की सीमाएं हैं, लेकिन ‘राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद उस राज्य के संबंध में लिए गए केंद्र के हर फैसले को कानूनी चुनौती नहीं दी जा सकती. वह अराजकता का कारण बन सकता है.’
जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. भारत के साथ विलय करते समय जम्मू-कश्मीर ने अपनी संप्रभुता का समर्पण कर दिया था. जम्मू-कश्मीर के पास ऐसी कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है, जो अन्य राज्यों से अलग हो. जम्मू-कश्मीर का संविधान केवल भारत के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए था.’
‘अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है. जम्मू-कश्मीर का संविधान भारत के संविधान के अधीन था. अनुच्छेद 370 को एक अंतरिम प्रक्रिया के रूप में संक्रमणकालीन उद्देश्य की पूर्ति के लिए पेश किया गया था.’
‘संविधान सभा की सिफ़ारिश राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं थी. संविधान सभा एक अस्थायी संस्था थी. इसका मतलब है कि राष्ट्रपति अनुच्छेद 370 को निरस्त कर सकते हैं.’
राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा को चुनौती मान्य नहीं है. राष्ट्रपति की शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति शासन के उद्देश्य के साथ उचित संबंध होना चाहिए.
‘हमें नहीं लगता कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की राष्ट्रपति की कवायद दुर्भावनापूर्ण थी और राज्य के साथ किसी सहमति की आवश्यकता नहीं थी. राष्ट्रपति द्वारा इसे निरस्त करने से पहले केंद्र सरकार की सहमति मांगना मनमाना नहीं है.’
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम पर पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘चूंकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा है कि राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा, हम अधिनियम की वैधता पर नहीं जा रहे हैं.’
कोर्ट ने कहा, ‘हम निर्देश देते हैं कि सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराए जाएं और राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए.’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का संविधान बेमानी हो गया है. कोर्ट ने कहा, राज्य के लिए कानून बनाने की संसद की शक्ति कानून बनाने की शक्ति को बाहर नहीं कर सकती.

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