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बाजारों में फैली तिल-गुड़ की सुगंध, बाजार में बिक रही 15 से अधिक प्रकार की गजक, भाव 300 से 550 रुपए किलो

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जबलपुर
शीतकाल में मकर संक्रांति पर्व से पहले तिल की गजक व लड्डू से बाजार महकने लगे हैं। गजक, लड्डू, काजू पट्टी, काजू रोल, तिल की वर्फी के साथ विभिन्न प्रकार की गजक रोजाना तैयार की जा रही है। एक दुकान पर पचास से साठ किलो माल रोज तैयार हो रहा है। सर्दी के चलते बाजारों में गजक व तिल के मिष्ठानों की दुकानें सज चुकी हैं, जिनसे लोग जमकर खरीद कर रहे हैं। हालांकि बीते कुछ वर्षों के दौरान तिल, गुड़ की मिठाईयां, गजक महंगी हुई है। इसके बावजूद गजक और तिल-गुड़ के लड्डुओं की महक लोगों को पूर्ववत दुकानों की ओर आकर्षित कर रही है। इस मकर संक्रांति पर बाजार में 15 से अधिक तरह की गजक लोगों के लिए उपलब्ध हैं। सादा गजक, तिल के लड्डू की डिमांड-मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ से बनी मिठाई का विशेष महत्व होता है।
 
सादा गजक और तिल के लड्डू की डिमांड सबसे ज्यादा
यही वजह है कि बाजारों में बड़ी तादाद में गुड़ और तिल से बनी मिठाई लोगों के लिए उपलब्ध है। मकर संक्रांति पर पूजा में इस्तेमाल के अलावा लोग इसका उपयोग दान-पुण्य में भी करते हैं।
इस बार सबसे ज्यादा सादा गजक और तिल के लड्डू की डिमांड है। गजक व्यवसायी बताते हैं कि सर्दी ज्यादा पड़ने के कारण इस साल बाजार में रौनक अच्छी है। इस मकर संक्रांति पर अच्छी ग्राहकी की उम्मीद है।
शुक्ला नगर निवासी वृद्धा चंद्रकला देवी कहती हैं, ‘एक समय था जब पौष शुरू होते ही बाजार से सफेद व काला तिल खरीदकर ले आते थे। तिल को धोकर उसे सुखाया जाता था फिर उसे चुना जाता था।’
‘इसके बाद कड़ाही में सेंककर उसमें गुड़ की चाशनी मिलाकर लड्डू बनाए जाते थे। भगवान को भोग लगाकर पूरे माह लड्डू खाते थे, खासकर संक्रांति के दिन विशेष रूप से डिब्बा भरकर लड्डू बनते थे।’
‘अब इतनी मेहनत करने की हमारी उम्र नहीं रही और वर्तमान पीढ़ी की बहूओं को लड्डू बनाने में कोई रुचि नहीं रह गई है। इसलिए बाजार से लड्डू खरीदकर लाते हैं और पूजन की परंपरा निभाते हैं।’

मकर संक्रांति पर तिल का है विशेष महत्व
मकर संक्रांति पर तिल खाने और दान करने का विशेष महत्व है। इस दिन लोग स्नान इत्यादि करने के बाद काले और सफेद तिल से बनीं वस्तुओं का दान करते हैं।

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