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अरहर दाल बदल देगी बुंदेलखंड की किस्मत, अब मिलेगी अंतरराष्ट्रीय पहचान, GI टैग की प्रक्रिया शुरू

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चित्रकूट
 बुंदेलखंड क्षेत्र में पैदा होने वाली अरहर की दाल को जल्द ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में नई पहचान मिलने वाली है। इसे भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग देने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। कृषि विभाग के अधिकारियों का मानना है कि जीआई टैग मिलने के बाद किसानों को बेहतर कीमत मिलेगी, जिससे उनकी आय में दोगुनी बढ़ोतरी होगी।

4 जिलों में अरहर की खेती का बना नया रिकॉर्ड
बुंदेलखंड में चित्रकूटधाम मंडल के चार जिले- हमीरपुर, महोबा, बांदा और चित्रकूट- अरहर की दाल की पैदावार के लिए एक बड़ा केंद्र बन चुके हैं। यहां हर साल खेती का रकबा लगातार बढ़ रहा है। इस साल इन चार जिलों में कुल 68,453 हेक्टेयर क्षेत्रफल में अरहर की खेती की गई है, जो एक नया रिकॉर्ड है। इसमें हमीरपुर में 19,150 हेक्टेयर, महोबा में 4,376 हेक्टेयर,बांदा में 24,795 हेक्टेयर और चित्रकूट में 20,132 हेक्टेयर अरहर की खेती की गई है।

कोरोना काल के बाद किसानों ने चमकाई किस्मत
कोरोना महामारी के बाद से क्षेत्र के किसानों ने अरहर की खेती पर ध्यान केंद्रित किया और बेहतर उत्पादन के जरिए अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत की। पिछले कुछ वर्षों में इन जिलों में खेती का रकबा तेजी से बढ़ा है। वर्ष 2021 में जहां कुल 52,888 हेक्टेयर में अरहर की खेती हुई थी> वहीं इस साल यह आंकड़ा 68,453 हेक्टेयर तक पहुंच गया है।

GI टैग से खुलेगा अंतरराष्ट्रीय बाजार का रास्ता
उप कृषि निदेशक विजय कुमार ने बताया कि बुंदेलखंड की अरहर दाल को जीआई टैग दिलाने के लिए उच्च स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। इस प्रक्रिया के तहत जीपीएस तकनीक से खेती का सर्वे भी कराया जाएगा। जीआई टैग मिलने के बाद अरहर की दाल को अंतरराष्ट्रीय बाजार में नई पहचान मिलेगी और किसानों को दाल बेचने पर बेहतर दाम मिलेंगे।

हजारों किसानों की बदलेगी किस्मत
हमीरपुर, महोबा, बांदा और चित्रकूट जिलों में 19,000 से अधिक किसान अरहर की खेती करते हैं। जीआई टैग मिलने के बाद न केवल इन किसानों की आय में वृद्धि होगी, बल्कि यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दाल उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हो सकेगा।

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